Monday 13 November 2017

समीक्षा - 'रुह से रूह तक'

दो दिलों की एक मासूम कहानी 

विनीत बंसल द्वारा रचित उपन्यास 'रूह से रूह तक' एक कोशिश है छात्र जीवन में प्रेम और फिर बनते बिगड़ते रिश्तों से गुज़र कर क़ैदखाने तक के सफ़र को शब्दों में ढ़ालने की | कहानी वैसे तो भूमिका में दिए विवरण से ही आरम्भ हो जाती है जब एक पत्रकार नील से मिलने उसके बैरक आता है लेकिन 17 अध्यायों में सिमटी इस उपन्यास की कहानी नील के कॉलेज और प्रेम के इर्द गिर्द घूमती हुई क़ैदख़ाने तक पहुँचती है |

कहानी का प्लॉट औसत दर्जे की है और लेखन शैली से फिल्मी अंदाज झलकता है | कहानी में आपको भावनाओं के साथ साथ चरित्र की मासूमियत भी पढ़ने को मिलेगी हालाँकि लेखक पाठक को कई जगहों पे यथार्थ से नहीं जोड़ पाते हैं | कुछ त्रुटियों कोअगर छोड़ दिया जाए तो छात्र जीवन मे प्रेम विषय पर एक अच्छी कोशिश है |

रेटिंग : 3 

Toward an Additional Social Order

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