Friday 2 January 2015

फिर से आओ न


फिर से आओ न

फिर से आओ न तुम
मेरे हबीब फिर से आओ न

दिल ओ ज़हन मोअत्तर हो गया है
कल उस ख़्वाब के बाद से
हाँ उस रात के बाद से
मेरी  हर बात से तेरी खुशबू निकलती है
मेरी हर सोच से तू ही तू निकलती है
मेरे हर क़दम से तेरी गली निकलती है
हो तो हर रात ऐसी हो जाए
फिर से आओ न तुम
मेरे हबीब फिर से आओ न

मैंने एक शेर कहा था
तेरा एक ख़्वाब चाहा था
और ये भी कहा था
दिल ओ जां में बस तू आ जाए
मेरा एक चाँद हो और वो तू हो जाए
तेरा चेहरा ज़हन की तितली बन जाए
मुझ पे जो गुज़रती है गुज़रने दो
चाक मेरा जिगर कर दो
मगर ख़्वाब में आओ न
फिर से आओ न तुम
मेरे हबीब फिर से आओ न

- असरारुल हक़ जीलानी
  तारीख़- 2 जनवरी 2015

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