Tuesday 24 June 2014

नम आँखों की मुस्कान 

बयाबाँ ए तख़य्युल में  तेरी यादों की खेती की हैँ 
खयालो की बंजर ज़मीन को
तेरे चेहरे की नूर से ज़रख़ेज़ की है 
पुराने बीते हुए लम्हों से काट कर 
कुछ टहनियों को बोया हूँ 

और कभी  कभी आँसुओं की बारिश  से 
नम  करता हूँ ज़मीं  को 
फिर  काटता हूँ हर रोज़ 
हर सुबह हर शाम 
हर पल तेरी यादों की  फ़सल 
जिसपे आँसुओं का खोल होता तो है मगर 
जब छील कर हटाता हूँ उसे 
तो नम आँखों से मुस्कुरा देता हूँ 

                                                        असरारुल हक़ जीलानी           

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