Friday 1 November 2013

MERI MAA : A poem by the words of construction worker children through my pen

मेरी माँ 

अपने अस्तित्व को सुरक्षित लेकर 
जब शाम को घर आती है मेरी माँ 
मेरी नन्ही सी जान को सीने से 
भींच लेती है मेरी माँ 

वो चली जाती है छोड़ कर लेकिन 
रोटी कि अस्तित्व घर लाती है मेरी माँ 
चली जाती है ईंट को ईंट से जोड़ने 
फिर ऊँचे मकान को अस्तित्व देती है मेरी माँ 

सर पे भविष्य के मकान को लिए 
अस्तित्व को बालू में पीस लेती है मेरी माँ 
फिर रात को मेरी बहन के रोने पे 
कितने आँसुओ को पी लेती है मेरी माँ

अब स्वयं के प्रमाण में माँ का न होना 
मेरे आत्मा को रुलाती है मेरी माँ 
बेटा बसा है शिक्षा में अस्तित्व तेरा 
हर रोज़ ये कह जाती थी मेरी माँ  


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